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कामिनी भाग 11

रात्रि ने देखा, जिस व्यापारी की उसने हत्या की थी, वह व्यापारी, बिना गर्दन के उसके सामने खड़ा है,उसके एक हाथ में स्वयं की गर्दन है और दूसरे हाथ में कामिनी की कटी हुई गर्दन है, वह धीरे-धीरे कक्ष के अंदर,रात्रि के नजदीक आ रहा है, फिर उस कटी गर्दन के व्यापारी ने अपने हाथों में लटकी गर्दन को अपने धड़ पर लगाया और कहा

"तुम्हें क्या लगा"? "तुमने हमें मार दिया है, इस जगत में केवल शरीर मिटता है, कभी किसी की इच्छा, नहीं मिटती है,जब तक तुमसे जुड़ी, मेरी वासना पूर्ण नहीं होगी, तब तक मैं, तुम्हारा पीछा नहीं छोडूंगा, अब या तो तुम, आत्म समर्पण कर दो या फिर मरने के लिए तैयार हो जाओ"! यह कहकर वह आगे बढ़ा और रात्रि जोर से चीखी

"नहीं"!

तभी कामीनी ने उसके दोनों कंधे पड़कर, उसे झंझोरा और पूछा

"क्या हुआ, रात्रि"?"ऐसे चिल्ला क्यों रही हो"?

रात्रि ने सबसे पहले द्वार पर देखा, वह बंद था फिर अपने आसपास देखा, तब उसे समझ आया, वह सपना देख रही थी फिर उसने थोड़ी राहत लेते हुए कहा

"एक डरावना सपना देखा, कामिनी"!

"सुबह हो गई है, चले"! कामिनी ने हंसते हुए कहा

कामिनी और रात्रि एक बैलगाड़ी पर सवार होकर, सिंधु देश के लिए निकलती है, रात्रि ने कामिनी की और मुस्कुराते हुए देखा और कहां

"आज सूर्यास्त होने से पहले, हम सिंधु देश पहुंच जाएंगे, अब हमें किसी भी प्रकार से भयभीत होने की आवश्यकता नहीं है"!

"जिसके साथ तुम्हारे जैसी निर्भय सखी हो, उस से भय भी भयभीत होता है, तुम्हें कोटि-कोटि धन्यवाद,रात्रि"!

तभी रात्रि ने कहा

"वाहक"!"गाड़ी रोको"!

रात्रि उतरी और उसने कहा

"चलो सिंधु मां के दर्शन करके आते हैं"!

फिर कामिनी और रात्रि सिंधु नदी के तट पर आते हैं और रात्रि रहती है

"हम सभी सिंधु वासी, इस सिंधु नदी को अपनी मां, मानते हैं, माँ को बच्चे हृदय से प्रणाम करो"!

दोनों ने सिंधु नदी को प्रणाम किया और दोनों वापस बैलगाड़ी में बैठकर, सफर पर निकल पड़ी, नगर के पूर्व रात्रि और कामीनी ने एक ऊंचे टीले पर महलनुमा दुर्ग देखा, तब रात्रि ने बताया

"यह तुम्हारे मानकराव का महल है, तुम यहां की होने वाली रानी हो, मैं महल में सूचना भिजवा कर आती हूं, तब तक तुम, उस सामने वाले वृक्ष के नीचे आराम करो, रात्रि के जाने के बाद, कामिनी जाकर, उस वृक्ष के नीचे बैठती है, तभी उसके कानों में एक जानी-पहचानी सी आवाज सुनाई देती है, कामिनी उत्सुकता से वृक्ष के दूसरी ओर से आ रही, उस आवाज की तरफ बड़ी और उसने देखा उसका प्रेमी, मानक राव ओम,,,,,का जाप कर रहा है, उसने गेरुआ रंग के कपड़े पहन रखे हैं और अपना सर मुंडवा लिया है, यह दृश्य देखकर, कामिनी के पैरों से मानो, ज़मीन खिसक गई हो, यह दृश्य देखकर उसका हृदय, मोम की तरफ पिघल जाता है और उसके नेत्रों की अग्नि से पिघल कर बहने लगता है,क्योंकि कामिनी सौंदर्य प्रेमी है, वह अपने प्रेमी का ऐसा, कुरुप रूप देखकर आश्चर्य के साथ दुखी भी है, व्यथित भी है, कामिनी की सिसकियां सुनकर मानक राव ने आंखें खोली और देखकर, चौंकते हुए कहा

"अरे,,,कामीनी तुम यहां कब आई"? "कैसे आई"?मानक राव ने उठते हुए कहा

"मुझे सूचना मिली थी कि तुमने सन्यास धारण कर लिया है पर मुझे उस सूचना पर विश्वास नहीं था, इसीलिए मैं यहां चली आई, तुम मेरे हृदय में प्रेम की ज्वाला जलाकर, किस शांति की खोज कर रहे हो,मनुष्य के जीवन में प्रेम से बड़ा कोई सुख नहीं होता,कोई शांति नहीं होती, मेरे प्रियवर इस हठ को त्याग दो और प्रेम के उपासक बनो"!

"कामिनी"! "पहले मुझे जीवन का सत्य प्रेम ही प्रतीत होता था पर जब मैं कुलगुरु सामन मुनी से मिला तो उन्होंने मुझे मुक्ति का मार्ग दिखाया, मुक्ति ही हर मनुष्य के जीवन का परम लक्ष्य है, इसीलिए मैंने जगत का त्याग करके मुक्ति का मार्ग चुना है"! मानक राव ने कहा

"जगत में रहकर,जगत का त्याग कैसे हो सकता है"? मेरे कामदेव"! "गेरूआ वस्त्र धारण करने और सर मुंडवा कर कोई त्यागी नहीं हो जाता, जिस संन्यास की तुम बात कर रहे हो, उसे मैं अभी इसी वक्त, नष्ट कर सकती हूं, मुझे अपने हृदय से लगा लो और अपने होठों से मेरे होठों को चूम लो, तुम्हें सन्यास नपुंसकों का कार्य प्रतीत ना हो तो कहना"!कामिनी ने कहा

"कामिनी"! 'अपनी हद में रहो, तुम मुक्ति के मार्ग को नपुंसकता से परिभाषित कर रही हो,अपने मचलते यौवन की अभिलाषाओं को अपने वश में रखो, मैंने सन्यास का निर्णय बहुत सोच-समझ कर लिया है, मेरा निश्चय अटल है, उसे किसी स्त्री के सुंदरता,यौवन नहीं बदल सकता"! मानक राव ने स्पष्ट कहा

"तो फिर क्यों दिखाए मुझे, झूठे सपने, क्यों किए थे मुझसे वो झूठे वादे, क्यों जलाया तुमने, मेरे हृदय में प्रेम का दीपक, वेश्याओं के बीच रहते हुए भी मैंने, कभी अपने तन को किसी को छूने नहीं दिया, इसे तुम्हारी अमानत मानकर संभाल कर रखा, तुम्हारी यादों की तपस्या में जलती रही और आज तुम मुझे छोड़ना चाहते हो, छल किया है,तुमने मेरे विश्वास के साथ, मेरी इच्छाओं के साथ, मेरे समर्पण के साथ ओर मेरे सच्चे प्रेम के साथ, अगर तुम इस जीवन में मेरे नहीं हो पाए तो मैं, तुम्हें किसी का नहीं होने दूंगी"! कामिनी ने स्पष्ट कहा

"मुक्ति का मार्ग स्वतंत्र है, यह मार्ग किसी पर निर्भर नहीं है, इसीलिए इस मार्ग में किसी और का कोई स्थान ही नहीं है, मेरे अस्तित्व का रहस्य, मुझ स्वयं से जुड़ा है, तुम किस दूसरे की बात कर रही हो, मैं स्वयं का होने जा रहा हूं"!मानक राव ने बताया

"अगर तुम मेरे नहीं हो पाए तो मैं, तुम्हें स्वयं का भी नहीं होने दूंगी"! कामिनी ने गुस्से से कहा

"तुम मुझे स्वयं का होने से कैसे रोक सकती हो"? इसका तो कोई उपाय ही नहीं है"!मानक राव ने समझाते हुए कहा

"संकल्प पूरा करने के लिए जीवन का होना भी अनिवार्य है,जब तुम्हारे पास, तुम्हारा जीवन ही नहीं होगा तो तुम, तुम्हारे सन्यास के संकल्प को कैसे पूर्ण करोगे"?कामिनी ने अपनी कमर से कटार निकालते हुए कहा

क्या कामीनी सच में अपने जान से अधिक प्रिय, प्रेमी की हत्या कर देगी"?

"क्या मानक राव, कामिनी के क्रोध से स्वयं को बचा पाएगा"?

अपने सभी द्वन्द और प्रश्नों के उत्तर जानने के लिए पढ़ते रहिए

कामीनी एक अजीब दास्तां

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1 Comments

Gunjan Kamal

10-Nov-2023 08:14 PM

👌👏🙏🏻

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